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अशोक एक कुशल शासक होने के साथ-साथ उदार व्यक्ति भी था। परीक्षण कीजिये।

21 Aug 2019 | रिवीज़न टेस्ट्स | इतिहास

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

प्रश्न विच्छेद

• कथन अशोक के कुशल शासक होने के साथ-साथ उदार व्यक्ति होने के परीक्षण से संबंधित है।

हल करने का दृष्टिकोण

• अशोक के बारे में संक्षिप्त उल्लेख के साथ परिचय लिखिये।

• अशोक के कुशल शासक होने के साथ-साथ उदार व्यक्ति होने के पक्ष एवं विपक्ष में तर्क प्रस्तुत करते हुए उत्तर लिखिये।

• उचित निष्कर्ष लिखिये।

अशोक न केवल मौर्य राजवंश बल्कि इतिहास के महानतम राजाओं में से एक था। उसने राज्य की आवश्यकताओं के अनुरूप अपनी नीतियों के स्वरूप को निर्धारित किया जो इसके भेरीघोष एवं धम्मघोष की नीतियों में परिलक्षित होता है। इसमें उसे महत्त्वपूर्ण सफलता भी मिली।

अशोक के एक कुशल शासक होने के साथ-साथ उदार व्यक्ति होने के पक्ष एवं विपक्ष में तर्क निम्नलिखित हैं-

पक्ष में तर्क:

  • सम्राट अशोक ने शासक बनने से पूर्व कई साम्राज्यों में उठने वाले विद्रोहों का सफलतापूर्वक दमन कर अपनी कुशलता को सिद्ध भी किया था।
  • कलिंग युद्ध के पश्चात शांतिकालीन परिस्थितियों में व्यावहारिकता के अनुरूप भेरिघोष की बजाय धम्मघोष की नीति अशोक की दूरदर्शिता के साथ-साथ कुशल शासक होने का प्रमाण है।
  • सम्राट अशोक ने श्रीलंका और मध्य एशिया में एक प्रबुद्ध शासक के रूप में प्रचार के द्वारा अपने राजनीतिक प्रभाव क्षेत्र को विस्तृत किया।
  • अशोक ने पड़ोसी राज्यों को सैनिक विजय के उपयुक्त क्षेत्र समझना अनुचित समझा और उन्हें आदर्श विचारों से जीतने का प्रयास करने लगा।
  • अशोक ने मध्य एशिया एवं यूनानी राज्यों में अपने शांतिदूत भेजे और पड़ोसी देशों में भी उसने मनुष्यों एवं पशुओं के कल्याण के लिये कार्य किया।
  • सम्राट अशोक ने साम्राज्य की समस्याओं के प्रति संवेदना व्यक्त करते हुए धम्म-महामात्त नाम के अधिकारियों की नियुक्ति की जो जगह-जगह जाकर धम्म की शिक्षा देते थे।
  • अशोक ने सड़कें बनवाईं, कुएँ खुदवाए और विश्रामगृह बनवाए तथा मनुष्यों व जानवरों की चिकित्सा की भी व्यवस्था की।

विपक्ष में तर्क:

  • कुछ विद्वान अशोक की धार्मिक नीति, शांतिप्रियता एवं अहिंसा की नीति को मौर्य साम्राज्य के पतन का कारक मानते हैं जो कुशल शासकत्व के गुणों पर प्रश्नचिह्न लगाता है।
  • अशोक की भेरिघोष की बजाय धम्मघोष की नीति उसके उदार व्यक्तित्व का परिणाम न होकर तत्कालीन समय में साम्राज्यिक आवश्यकताओं से प्रेरित थी। अशोक की आटविक जनजातियों को चेतावनी, भेरिघोष के बने रहने एवं अशोक के उदार चरित्र पर प्रश्नचिह्न है।
  • कुछ विद्वानों का मानना है कि अशोक का शासन एवं सेना-संगठन, संचार-साधन और जनता के कल्याण की बजाय धार्मिक सम्प्रदायों को की जाने वाली दानशीलता से अर्थव्यस्था पर विपरीत असर पड़ा, जिसकी परिणति साम्राज्य के पतन के रूप में हुई।

यह सत्य है कि अशोक की नीतियाँ साम्राज्यिक आवश्यकताओं के अनुरूप थीं लेकिन इससे सम्राट अशोक के कुशल शासक एवं उदार चरित्र के व्यक्ति होने पर प्रश्नचिह्न लगता नहीं प्रतीत होता है। वंशानुगत साम्राज्य की अपनी कमज़ोरियाँ होती हैं जिसमें केंद्र में योग्य शासक का होना नितांत आवश्यक होता है और इसे ही पतन के लिये प्रमुख कारण माना गया है। उससे पूर्व ऐसा कोई दृष्टान्त इतिहास में नहीं मिलता है कि जिससे उसने प्रेरणा ली हो। शासक बनने से पूर्व एवं पश्चात् उसने विभिन्न स्तरों पर अपनी कुशलता को सिद्ध किया है।