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  • 23 Mar 2025 निबंध लेखन निबंध

    दिवस- 14: संघवाद: शक्ति विभाजन के माध्यम से एकता की मज़बूती। (750 शब्द)

    परिचय

    आप निम्नलिखित उपाख्यानों/उदाहरणों से शुरुआत कर सकते हैं:

    • भारत का भाषायी पुनर्गठन (1956)
      • संदर्भ: स्वतंत्रता के बाद, भाषायी विविधता थी और भाषा के आधार पर राज्यों की मांग की गई।
      • कार्रवाई: राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 ने मोटे तौर पर भाषायी पहचान के आधार पर राज्यों का निर्माण किया।प्रभाव: क्षेत्रीय आकांक्षाओं को समायोजित करते हुए अलगाववादी आंदोलनों को रोका गया और एकता को मज़बूत किया गया।
    • संयुक्त राज्य अमेरिका: सत्ता-साझेदारी की कार्यवाही
      • संदर्भ: अमेरिकी संविधान संघीय सरकार और राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन करता है, जिससे शासन में अनुकूलन आता है।
      • उदाहरण: कैलिफोर्निया के पर्यावरण कानून संघीय कानूनों की तुलना में अधिक सख्त हैं, जो एकीकृत प्रणाली के अंतर्गत राज्य की स्वायत्तता को दर्शाते हैं।
    • स्विट्ज़रलैंड: बहुभाषी समाज में संघवाद
      • संदर्भ: चार आधिकारिक भाषाएँ (जर्मन, फ्रेंच, इतालवी, रोमांश)।
      • संघीय संरचना: भाषाई समूहों के बीच सत्ता की साझेदारी सांस्कृतिक विविधता के बावजूद सद्भाव सुनिश्चित करती है ।
    • जर्मनी: कोविड-19 के दौरान विकेंद्रित शक्ति
      • उदाहरण: महामारी के दौरान, जर्मन संघीय राज्यों (लैंडर) को लॉकडाउन उपायों में स्वायत्तता प्राप्त थी, जिससे राष्ट्रीय समन्वय बनाए रखते हुए स्थानीय स्तर पर प्रतिक्रिया सुनिश्चित की जा सके।
    • इन उपाख्यानों/उदाहरणों की सहायता से इस बात पर चर्चा करने का मंच तैयार कीजिये कि विभाजनकारी शक्ति वास्तव में राष्ट्रीय एकता को कैसे मज़बूत करती है।

    मुख्य भाग:

    • संघवाद को एक ऐसी शासन प्रणाली के रूप में परिभाषित कीजिये जो केंद्र और राज्य सरकारों के बीच शक्तियों का विभाजन करती है।
    • संघवाद और एकता की समझ पर चर्चा कीजिये
      • समझाइये कि सत्ता की साझेदारी किस प्रकार अधिनायकवाद को रोकती है तथा अधिक क्षेत्रीय स्वायत्तता प्रदान करती है।
      • भारत (अर्द्ध-संघवाद), संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा के उदाहरणों का हवाला देते हुए बताइये कि कैसे संघीय संरचनाओं ने विविध आबादी को समायोजित किया है।
    • एकता के तंत्र के रूप में संघवाद की व्याख्या कीजिये
      • विविधता को समायोजित करना: संघवाद यह सुनिश्चित करता है कि भाषायी, सांस्कृतिक और क्षेत्रीय पहचान का सम्मान किया जाए (उदाहरण के लिये, भाषा के आधार पर भारतीय राज्य)।
      • विकेंद्रीकृत शासन: स्थानीय स्तर पर निर्णय लेने से अधिक उत्तरदायी शासन संभव होता है (उदाहरणार्थ, भारत में पंचायती राज)।
      • संघर्ष समाधान: शक्ति विभाजन से अलगाववादी प्रवृत्तियों में कमी आती है (उदाहरणार्थ, जम्मू और कश्मीर पर अनुच्छेद 370 का प्रभाव)।
      • आर्थिक विकास: संघवाद राज्यों को विकास के लिये क्षेत्र-विशिष्ट नीतियाँ तैयार करने की अनुमति देता है (उदाहरण के लिये, GST परिषद, नीति आयोग का सहकारी संघवाद)।
    • संघवाद और एकता के समक्ष चुनौतियों पर प्रकाश डालिये
      • सत्ता का केंद्रीकरण: केंद्र सरकार द्वारा अत्यधिक हस्तक्षेप संघीय सिद्धांतों को कमज़ोर करता है (उदाहरणार्थ, अनुच्छेद 356 का दुरुपयोग - राष्ट्रपति शासन)।
      • अंतर्राज्यीय विवाद: जल-बँटवारे से संबंधित विवाद (जैसे- कावेरी विवाद) राष्ट्रीय एकता को चुनौती दे सकते हैं।
      • आर्थिक असमानताएँ: असमान संसाधन वितरण राज्यों के बीच विकासात्मक अंतराल उत्पन्न कर सकता है।
    • भारत में संघवाद पर समितियों और आयोग की सिफारिशों का उल्लेख कीजिये
      • सरकारिया एवं पुंछी आयोगों ने सामंजस्यपूर्ण केंद्र-राज्य राजनीतिक संबंधों पर ध्यान केंद्रित किया।
      • वित्त आयोगों ने राजकोषीय संघवाद पर काम किया है।
      • नीति आयोग नीति-निर्माण में सहकारी संघवाद को बढ़ावा देता है।
      • राजमन्नार और NCRWC आयोगों ने कम केंद्रीकरण का समर्थन किया।
    • एकता के लिये संघवाद को मज़बूत करने के लिये आगे की राह
      • सहकारी संघवाद को मज़बूत करना (जैसे- GST परिषद, अंतर-राज्य परिषदें)।
      • राजकोषीय संघवाद (राज्यों को संसाधनों का अधिक हस्तांतरण) को प्रोत्साहित करना।
      • न्यायिक एवं संस्थागत सुरक्षा (केंद्र-राज्य संबंधों में संतुलन सुनिश्चित करना)।
      • स्थानीय सरकारों को सशक्त बनाना (73वाँ और 74वाँ संविधान संशोधन)।

    निष्कर्ष

    • इस बात की पुनः पुष्टि करें कि संघवाद, जब प्रभावी रूप से क्रियान्वित किया जाता है, तो एक मज़बूत केंद्रीय ढाँचे को सुनिश्चित करते हुए क्षेत्रीय आकांक्षाओं को समायोजित करके राष्ट्रीय एकता को मज़बूत करता है।
    • डॉ. बी.आर. अंबेडकर का उद्धरण: "संघवाद का मूल सिद्धांत यह है कि केंद्र और राज्यों के बीच विधायी एवं कार्यकारी प्राधिकार का विभाजन केंद्र द्वारा बदले जाने वाले किसी कानून द्वारा नहीं, बल्कि संविधान द्वारा किया जाता है"।
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