दृष्टि द विज़न
समय-प्रबंधन
- 13 Sep 2018
क्योंकि सही समय-प्रबंधन के बिना सफलता का सपना बेमानी है....
प्रिय पाठको,
उम्मीद है कि सिविल सेवा परीक्षा के लिये आपकी तैयारी जोर-शोर से चल रही होगी। आपमें से कुछ पाठक मध्य प्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश या किसी अन्य राज्य की पी.सी.एस. परीक्षा की तैयारी में भी जुटे होंगे और सिविल सेवा परीक्षा से पहले ही अपनी उस परीक्षा के लिये शिद्दत से पढ़ रहे होंगे। मैं जिन विद्यार्थियों से मिलता हूँ, उनमें से अधिकांश की एक जिज्ञासा यह होती है कि वे समय का प्रबंधन कैसे करें? उनको लगता है कि इस परीक्षा का पाठ्यक्रम अनंत है, जबकि उनके पास समय बेहद सीमित है। ऐसे में वे कौन-सा तरीका निकालें कि उपलब्ध समय के भीतर ही उनका पूरा पाठ्यक्रम तैयार हो जाए। आज के संपादकीय में हम समय-प्रबंधन पर ही चर्चा करेंगे।
सबसे पहले यह समझ लेना ज़रूरी है कि सफल-से-सफल व्यक्ति और विफल- से- विफल व्यक्ति के पास समय बराबर होता है। दोनों के पास वही 24 घंटे हैं और उन्हीं में उन्हें अपनी योजनाएँ बनानी हैं, सपने पूरे करने हैं। इसलिये, अगर एक व्यक्ति उतने ही समय में सफलता के झंडे गाढ़ देता है, जबकि दूसरा व्यक्ति हर समय इसी बात का रोना रोता है कि उसके पास समय नहीं है तो सामान्यतः यही मानकर चलना चाहिये कि दूसरे व्यक्ति के समय-प्रबंधन में कोई गंभीर समस्या है। एक संभावना हो सकती है कि उसका जीवन पहले व्यक्ति की तुलना में जटिल हो और इस वज़ह से उसे समय की कमी ज़्यादा खलती हो। ऐसे एकाध अपवाद को छोड़ दें तो मैं दावे से कह सकता हूँ कि समस्या समय की नहीं, समय-प्रबंधन की है।
अगर आप दुनिया का इतिहास टटोलेंगे तो आपको कुछ ऐसे उदाहरण ज़रूर मिल जाएंगे जिन्हें प्रकृति या ईश्वर ने बहुत कम समय दिया किंतु उसके बावजूद उन्होंने कुछ ऐसा कर दिखाया जो बाकी लोग उनकी तुलना में पर्याप्त समय होने के बाद भी नहीं कर सके। भगत सिंह 23 वर्ष की उम्र में कई गहरी किताबें लिखकर देश के लिये अपनी ज़िंदगी कुर्बान कर गए, जबकि अधिकांश नौजवान इस उम्र तक यह भी तय नहीं कर पाते कि उनको जीवन में क्या करना है। शंकराचार्य को सिर्फ 32 वर्षों का जीवन मिला किंतु वे उसी अवधि में अद्वैत वेदांत की ऐसी व्याख्या कर गए जिसे खारिज़ करने में बाकी दार्शनिक खुद को आज तक असमर्थ पाते हैं। पश्चिम के प्रसिद्ध रोमांटिक कवि कीट्स को सिर्फ 25 साल की ज़िंदगी मिली तो शेली को सिर्फ 29 साल की, पर तब भी अंग्रेज़ी की रोमांटिक कविता में जितना सम्मान इन कवियों को मिलता है, उतना पूरी शताब्दी जीने वालों को भी नहीं। सार यह है कि कुछ बड़ा करने के लिये बहुत लंबी ज़िंदगी की ज़रूरत नहीं होती, ज़िंदगी के एक-एक क्षण को ठीक से जीने और निचोड़ लेने की ज़रूरत होती है।
ऐसे और भी हजारों उदाहरण हैं। मैं कुछ ऐसे विद्यार्थियों को जानता हूँ जिन्होंने कोई नौकरी करते हुए सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी की और इसके बावजूद सफलता हासिल की; जबकि दूसरी ओर ऐसे हज़ारों उम्मीदवार हैं जिन्हें उनके घर से बेहतरीन सुविधाएँ मिलती हैं, बिना किसी तनाव के 24 घंटे पढ़ने का मौका मिलता है लेकिन तब भी उनकी सफलता दर उन लोगों से कम दिखती है जो नौकरी करते हुए तैयारी कर रहे थे। इसका प्रमुख कारण यह है कि नौकरी करने वाले व्यक्तियों को एक-एक क्षण की कीमत का अहसास होता है। उनके भीतर रात-दिन यह तड़प रहती है कि उन्हें अपने वर्तमान से बेहतर जीवन हासिल करना है और उसके लिये उनके पास यही एकमात्र तरीका होता है कि वे अपने 24 घंटों का भरपूर लाभ उठाएँ।
समय-प्रबंधन के गुर सीखने के लिये सबसे पहले कुछ गलतफहमियों को दिमाग से हटाना ज़रूरी है। पहली बात यह समझ लेनी है कि हमें समय का प्रबंधन नहीं करना है, बल्कि उपलब्ध समय के अनुसार अपना प्रबंधन करना है। दूसरी बात यह समझ लेनी चाहिये कि सीमित समय में आप जितने काम कर लेना चाहते हैं, वे कभी भी पूरी तरह समाप्त नहीं होंगे; इसलिये एक तरह के अधूरेपन को झेलने की, उसके साथ जीने की आदत आपको विकसित करनी ही होगी। तीसरी बात यह है कि अगर आप एक साथ बहुत कुछ साधने की कोशिश करेंगे तो पूरा खतरा है कि आप कुछ भी नहीं साध पाएंगे। जब तक आपके प्रयास ‘फोकस्ड’ नहीं होंगे, तब तक सफलता आपके नज़दीक भी नहीं फटकेगी। कहा भी गया है कि एक साधे सब सधै, सब साधे सब जाय।'
समय-प्रबंधन के लिये पहली ज़रूरत सही योजना निर्माण की है। योजना भी दो प्रकार की- पहली, एक विस्तृत योजना जिसके तहत आप यह तय करें कि आपको अपना पूरा पाठ्यक्रम कितने वर्षों/महीनों में किस क्रम से पूरा करना है; और दूसरी यह कि एक दिन के भीतर आपको विभिन्न समय-खंडों का उपयोग कैसे करना है? ये दोनों योजनाएँ एक-दूसरे की सापेक्षता में बननी चाहिये। उदाहरण के लिये, अगर आप एक दिन में 10 घंटे पढ़ते हैं तो शायद आप पूरा पाठ्यक्रम एक वर्ष में समाप्त करेंगे और यदि आप एक दिन में 5 घंटे ही पढ़ते हैं तो आपकी विस्तृत योजना 2 वर्षों के अनुसार बनेगी।
पहले आपको अपनी विस्तृत योजना बना लेनी चाहिये। इसमें किसी वरिष्ठ या अनुभवी मित्र की सलाह लेना फायदेमंद होगा क्योंकि वह आपको किसी खंड विशेष को पूरा करने में लगने वाली संभावित अवधि बता सकेगा। योजना बनाते समय कोशिश करनी चाहिये कि आप परीक्षा से डेढ़ वर्ष पहले तैयारी शुरू कर सकें। ऐसी स्थिति में सबसे पहले आपको वे खंड पढ़ने चाहियें जो सिर्फ मुख्य परीक्षा में काम आते हैं, जैसे- वैकल्पिक विषय, निबंध, विश्व का इतिहास, एथिक्स इत्यादि। इन खंडों को शुरू में पढ़ने का लाभ यह होगा कि प्रारंभिक परीक्षा और मुख्य परीक्षा के बीच की महत्त्वपूर्ण अवधि में आपके ऊपर अनावश्यक दबाव नहीं रहेगा और वह महत्त्वपूर्ण समय आप नया पाठ्यक्रम तैयार करने की बजाय उसकी पुनरावृत्ति और उत्तर-लेखन अभ्यास में निवेश कर सकेंगे। इस दृष्टि से, सही यही होगा कि प्रारंभिक परीक्षा से करीब 8-9 महीने पहले आप इन खंडों को तैयार कर चुके हों और उसके बाद प्रतिदिन एकाध घंटे में उनकी निरंतर पुनरावृत्ति कर रहे हों।
प्रारंभिक परीक्षा से करीब 8-9 महीने पहले आपको उन खंडों की तैयारी शुरू कर देनी चाहिये जो प्रारंभिक और मुख्य दोनों परीक्षाओं में पूछे जाते हैं, जैसे- आधुनिक भारत का इतिहास, भारतीय कला एवं संस्कृति, भारत और विश्व का भूगोल, भारतीय अर्थव्यवस्था, पर्यावरण और पारिस्थितिकी, विज्ञान-तकनीक आदि। इन विषयों को इस तरह से पढ़ना चाहिये कि एक ही बार में आप इन्हें प्रारंभिक और मुख्य दोनों परीक्षाओं की ज़रूरतों के हिसाब से तैयार कर लें। प्रारंभिक परीक्षा की दृष्टि से आपको सूक्ष्मतम तथ्यों और अवधारणाओं की पहचान हो जाए और मुख्य परीक्षा की दृष्टि से आप इन खंडों पर विश्लेषणात्मक उत्तर लिखने में समर्थ हो जाएँ। इन खंडों की पढ़ाई के साथ-साथ रोज़ाना कम-से-कम 2 घंटों का समय आपको इनकी पुनरावृत्ति पर भी खर्च करना चाहिये ताकि परीक्षा से एकदम पहले आपके हाथ-पाँव न फूल जाएँ। जब प्रारंभिक परीक्षा में सिर्फ 2-3 महीने बचे हों, तब आपको पुनरावृत्ति का समय बढ़ा लेना चाहिये और केवल दो तरह के नए टॉपिक्स को पढ़ना चाहिये- प्रथमतः वे जो सिर्फ प्रारंभिक परीक्षा में पूछे जाते हैं, जैसे- जीव विज्ञान, प्राचीन और मध्यकालीन भारत का इतिहास आदि। इन खंडों को बहुत अधिक महत्त्व न देते हुए सिर्फ परीक्षा की प्रकृति की दृष्टि से देख लेना चाहिये ताकि आपका समय कम उत्पादक खंडों में व्यर्थ न हो। इसके अतिरिक्त, आखिरी एक महीने में आपको तेज़ी से पिछले एक वर्ष के करेंट अफेयर्स को दोहरा लेना चाहिये। अगर आप हर महीने इस पत्रिका को पढ़ते रहे हैं तो यह कार्य आपके लिये बहुत कठिन नहीं होना चाहिये। अंतिम समय में विभिन्न खंडों के लिये इस पत्रिका में प्रकाशित विशेष ‘सप्लिमेंट्स’ को देख लेना भी समय बचाने की दृष्टि से उपयोगी हो सकता है।
अब समय प्रबंधन के दूसरे पक्ष पर आते हैं। इसमें हमें यह समझना है कि हम अपने 24 घंटों के समय का सबसे बेहतरीन तरीके से कैसे उपयोग कर सकते हैं? इस संबंध में मेरी पहली सलाह यह है कि आप कम से कम 7-8 घंटों की नींद जरूर लें। पर्याप्त नींद का फायदा यह होता है कि जिस समय आप जाग रहे होते हैं, उस समय आपका ऊर्जा-स्तर ऊँचा रहता है। जो लोग 4-5 घंटे सोकर काम चलाना चाहते हैं, वे दिन भर बहुत उत्पादक तरीके से नहीं पढ़ पाते। दिन भर ऊंघने से कहीं बेहतर है कि रात को ही ठीक से सो लिया जाए। यह उपाय भी अच्छा हो सकता है कि आप रात को करीब 6 घंटे सोएँ और दिन में दोपहर के भोजन के बाद आधा-एक घंटा सो जाएँ। दोपहर का यह समय दिन भर में सबसे अधिक सुस्ती का समय होता है। अगर इसका उपयोग सोकर ऊर्जा एकत्रित करने में ही हो जाए तो बेहतर है। मैं इस संबंध में कोई सलाह नहीं दूंगा कि आपको रात को देर तक पढ़ना चाहिये या सुबह जल्दी उठना चाहिये? यह फैसला आपको अपने स्वभाव के अनुसार करना चाहिये। अगर आपको रात को ही पढ़ना पसंद है तो रात को पढ़ें। इसके विपरीत, अगर आपको सुबह-सुबह उठकर तरोताज़ा दिमाग के साथ पढ़ाई करने में अधिक उत्पादकता महसूस होती है तो आप उसी तरीके का प्रयोग करें। अगर आपके लिये दोनों विकल्प बराबर हैं तो मैं कहूंगा कि सुबह जल्दी उठना बेहतर है क्योंकि लंबे समय तक रात को जागने से आपका नींद-चक्र वैसा ही हो जाता है और परीक्षा से एक रात पहले आप सिर्फ करवटें बदलते रह जाते हैं और बिना पर्याप्त नींद लिये परीक्षा देने जाते हैं।
अब सवाल है कि आपको एक दिन में कितने घंटे पढ़ना चाहिये? मेरे ख्याल से सामान्यतः 8-10 घंटों की पढ़ाई पर्याप्त है। अगर आप कहीं कक्षाएँ अटेंड करते हैं तो वह समय भी इसमें शामिल है। 7-8 घंटे सोना, 8-10 घंटे पढ़ना, 1-2 घंटे मनोरंजन करना और बाकी समय दैनिक कार्यों में खर्च करना आपकी सामान्य दिनचर्या होनी चाहिये। हाँ, जैसे-जैसे परीक्षा नज़दीक आए, कुछ दिनों के लिये आपको पढ़ाई का समय बढ़ा देना चाहिये। परीक्षा से एकदम पहले 2-4 दिन अगर आप 14-15 घंटे भी पढ़ते हैं तो यह सही है।
अपने 24 घंटे के समय को एक निश्चित दिनचर्या में बाँटने का प्रयास कीजिये। अपने शेड्यूल के अनुसार अपने फोन में अलार्म सेट कर लीजिये ताकि आपको निश्चित समय पर यह ध्यान रहे कि अब क्या करना है। दिनचर्या इतनी सख्त मत बनाइये कि उसका पालन करने के लिये रोबोट बनना पड़े। दिनचर्या में पर्याप्त लचीलापन होना चाहिये ताकि अगर एकाध घंटा योजना के विपरीत खर्च हो भी जाए तो आप अपने लक्ष्यों से बहुत पीछे न रह जाएँ। सप्ताह में एकाध दिन सिर्फ इस चीज़ के लिये रखिये कि पीछे जो लक्ष्य अधूरे रह गए हैं, उन्हें पूरा कर लिया जाए; और अगर लक्ष्य पहले से पूरे हैं तो उन खंडों की पुनरावृत्ति कर ली जाए। अगर आप फेसबुक या वाट्सएप के आदी हैं और उसमें बहुत सारा समय खर्च कर बैठते हैं तो बेहतर होगा कि उनसे मुक्त होने का फैसला करें या उन्हें एकाध घंटे तक सीमित करने का कोई रास्ता निकालें। रास्ता यह हो सकता है कि आपका फोन आपके मित्र के पास रहे और आपको एक घंटे के लिये ही मिले। अगर आप आत्म-संयमन करने में समर्थ हैं तो इन प्लेटफॉर्म्स का अच्छा उपयोग कीजिये क्योंकि परीक्षा से संबंधित महत्त्वपूर्ण सामग्री भी आपको इन मंचों पर मिल सकती है।
दिन में कम-से-कम एक घंटा स्वस्थ मनोरंजन के लिये रखिये। इसमें आप दोस्तों के साथ गप्पे मारें, घूमें-फिरें या फिर किसी खेल-कूद में सक्रिय रहें। मनोरंजन आपका समय खराब नहीं करता बल्कि आपको ऊर्जा से भर देता है और वही ऊर्जा आपके अगले कुछ घंटों की उत्पादकता को बढ़ाती है। हो सके तो रोज लिखकर अपनी योजनाएँ बनाएँ और पुरानी योजनाओं के निष्पादन का मूल्यांकन करें। इस काम में दैनिक रूप से 10-15 मिनट खर्च करना आपके कई घंटों को बचाने के बराबर है। एक बार में बहुत सारे विषयों को पढ़ने की बजाय कम चीज़ों पर फोकस करें और उन्हें निश्चित समय-सीमा के भीतर पूरा करें। सिर्फ पॉइंट्स के रूप में संक्षिप्त नोट्स बनाएँ जिन्हें याद करना आसान हो। पोथियाँ न लिखें। एक बार में कई घंटे पढ़ने की बजाय हर एक घंटे पर 2-4 मिनट का ब्रेक जरूर लें क्योंकि वह मानसिक थकान को दूर करके आपकी उत्पादकता को पुनः बढ़ा देता है।
मुझे उम्मीद है कि ये सुझाव आपके लिये सहायक सिद्ध होंगे और आप कुशल समय-प्रबंधक साबित होंगे।
शुभकामनाओं सहित,
(डॉ विकास दिव्यकीर्ति)